बीमारियों का बोझ घट सकता है एक-तिहाई, ‘हेल्थ बेनिफिट असेसमेंट डैशबोर्ड’ ने खोला राज़

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बरसात का मौसम ख़त्म होते ही राजधानी में एक अहम चर्चा हुई। क्लाइमेट ट्रेंड्स और आईआईटी दिल्ली ने मिलकर एक वर्कशॉप का आयोजन किया, जहाँ पहली बार ऐसा टूल लॉन्च हुआ जो हवा की गुणवत्ता और जनता की सेहत के बीच सीधा रिश्ता सामने रखता है। इसका नाम है हेल्थ बेनिफिट असेसमेंट डैशबोर्ड।

यह डैशबोर्ड पाँचवीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के आँकड़ों पर आधारित है और पूरे देश के 641 ज़िलों का नक्शा सामने रखता है। इसमें दिखाया गया है कि बारीक धूलकण यानी PM2.5 प्रदूषण किस तरह महिलाओं और बच्चों में गंभीर बीमारियाँ बढ़ाता है—चाहे वह हाइपरटेंशन और दिल की बीमारी हो, सीओपीडी जैसी सांस की दिक़्क़तें हों या फिर महिलाओं और बच्चों में खून की कमी और कम वज़न वाले नवजात।
डैशबोर्ड का सबसे बड़ा संदेश साफ़ है: अगर नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत 2024 तक तय किया गया 30% प्रदूषण घटाने का लक्ष्य पूरा हो जाए तो देशभर में बीमारियों का बोझ लगभग एक-तिहाई कम हो सकता है।

आज भारत में NFHS-5 के हिसाब से कुल बीमारियों का बोझ 4.87% है। लेकिन अगर NCAP का लक्ष्य हासिल होता है तो यह घटकर 3.09% रह जाएगा। औसतन भारत की हवा में अभी PM2.5 का स्तर 43.23 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि लक्ष्य है इसे घटाकर 32.98 पर लाना।

सबसे बड़ा फ़ायदा उन इलाकों को होगा जहाँ आबादी ज़्यादा और प्रदूषण गहरा है-जैसे उत्तर भारत और पूर्वी राज्यों की घनी बसावट वाली पट्टियाँ। उदाहरण के तौर पर 15 से 49 साल की महिलाओं में डायबिटीज़ की दर इस समय 1.7% है, लेकिन प्रदूषण घटने पर यह 1.4% तक आ सकती है। वहीं छोटे बच्चों में लो बर्थ वेट और रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन जैसी बीमारियों में सबसे तेज़ गिरावट देखने को मिलेगी, ख़ासकर गंगा के मैदान और पूर्वी भारत में।

यह डैशबोर्ड अब सार्वजनिक है और कोई भी व्यक्ति इसे देख सकता है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स की डायरेक्टर आरती खोसला ने कहा,

“नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम उस वक्त एक साहसिक कदम था, जब इसे शुरू किया गया। इसमें सिर्फ़ PM10 ही नहीं बल्कि और भी खतरनाक PM2.5 को टारगेट करना असली स्वास्थ्य लाभों को सामने लाता है। अब ज़रूरी है कि इस प्रोग्राम को और मज़बूत किया जाए, ताकि ऊर्जा, उद्योग, परिवहन और निर्माण जैसे बड़े प्रदूषणकारी क्षेत्रों पर कड़ा एक्शन लिया जा सके। सर्दियों में उत्तर भारत फिर से जहरीली हवा से ढक जाएगा और लंबे समय तक ऐसे कण और मेटल्स शरीर पर भारी स्वास्थ्य लागत छोड़ते हैं।”

डैशबोर्ड को आईआईटी दिल्ली के SAANS सैटेलाइट डाटा और 2011 की जनगणना के ज़िला स्तर के नक्शों के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें प्रदूषण घटने की स्थिति को मॉडल कर दिखाया गया है कि साफ़ हवा कैसी सेहत दे सकती है।

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